Poem 1
इक बात होंटों तक है जो आई नहीं
बस आँखों से है झांकती
तुमसे कभी,मुझसे कभी
कुछ लफ्ज़ हैं वोह मांगती
जिनको पहनके होंटों तक आ जाए वोह
आवाज़ की बाहों में बाहें डालके इठलाये वोह
लेकिन जो यह इक बात है
अहसास ही अहसास है
खुशबू सी है जैसे हवा में तैरती
खुशबू जो बे -आवाज़ है
जिसका पता तुमको भी है
जिसकी खबर मुझको भी है
दुनिया से भी छुपता नहीं
यह जाने कैसा राज़ है
Poem 2
जब जब दर्द का बादल छाया
जब गम का साया लहराया
जब आंसू पलकों तक आया
जब यह तनहा दिल घबराया
हमने दिल को यह समझाया
दिल आखिर तू क्यूँ रोता है
दुनिया में यूँही होता है
यह जो गहरे सन्नाटे हैं
वक़्त ने सबको ही बांटे हैं
थोडा घूम है सबका किस्सा
थोड़ी धुप है सबका हिस्सा
आँख तेरी बेकार ही नाम है
हर पल एक नया मौसम है
क्यूँ तू ऐसे पल खोता है
दिल आखिर तू क्यूँ रोता है
Poem 3
पिघले नीलम सा बहता ये समां,
नीली नीली सी खामोशियाँ,
ना कहीं है ज़मीन ना कहीं आसमान,
सरसराती हुई टहनियां पत्तियाँ,
कह रहीं है बस एक तुम हो यहाँ ,
बस मैं हूँ,मेरी सांसें हैं और मेरी धडकनें ,
ऐसी गहराइयाँ,ऐसी तनहाइयाँ ,
और मैं …
सिर्फ मैं ...
अपने होने पर मुझको यकीन आ गया
Poem 4
दिलों में तुम अपनी बेताबियाँ लेके चल रहे हो,तो जिंदा हो तुम
नज़र में ख़्वाबों की बिजलियाँ लेके चल रहे हो,तो जिंदा हो तुम
हवा के झोकों के जैसे आज़ाद रहनो सीखो
तुम एक दरिया के जैसे लहरों में बहना सीखो
हर एक लम्हे से तुम मिलो खोले अपनी बाहें
हर एक पल एक नया समां देखे निगाहें
जो अपनी आँखों में हैरानियाँ लेके चल रहे हो,तो जिंदा हो तुम
दिलों में तुम अपनी बेताबियन लेके चल रहे हो,तो जिंदा हो तुम
Written by Javed Akhtar
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