तन्हायिया बढ़ रही है।
आसमा भी अनजान लग रहा है।
धरती जैसे जल रही है।
आँखों में उजाला अभ्भी है।
मंद बयार तुफान सी लग रही है।
शीतल जल धधक रहा है।
ज्योति ज्वाला बन रही है।
आँखों में उजाला अभ्भी है।
पंक्षी-प्राणी बेहाल है।
सजीव भी निर्जीव से लग रहे है।
जीवन अब मृत सा समझ आता है।
आँखों में उजाला अभ्भी है।
Doing Kamaal,
Kamal Upadhyay
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