भारतीय सिनेमा लगातार अवनति के मार्ग पे जा रहा है ! हर साल भारत मे ४०० से भी ज्यदा हिंदी फिल्मे आती है ! परन्तु हमारी आधिकांश फिल्मे कुछ ख़ास कमाल नहीं कर पति है !
भारतीय सिनेमा के इस गिरते स्तर का क्या कारण है ?
आज भारतीय निर्माता ऐसी फिल्मे बनाना चाहता है जो पुरे संसार मे पसंद की जाये ! और कम से कम एक मौका ओस्कार मे पहुचने का ! परन्तु हमारे निर्माता फिल्म बनाते समय हमें भूल जाते है! आज कई भारतीय निर्माता अन्तराष्ट्रीय दर्शको के लिए फिल्म बनाना चाहते है ! अन्तराष्ट्रीय दर्शको के लिए फिल्म बनाते समय उनके दिमाग से भारतीय दर्शक निकला जाते है ! मै उस भारतीय दर्शक की बात कर रहा हु जिसके लिए आज होलीवूड फिल्म बना रहा है ! आज अंग्रेजी भाषा मे बनने वाली हर फिल्म का हिंदी रूपांतरण हो रहा है !
स्वांस और हरिश्चंद्र ची फैक्ट्री भारत की प्रादेशिक भांषा मे बनी हुई फिल्म है जिसे ओस्कार मे जाने का मौका मिला. बॉलीवुड मे कई बड़ी बजट से बनी फिल्म आपने खर्च को निकलने मे भी नाकाम हो रही है . हमारे निर्माता आपनी फिल्म मे पाश्चात्य सभ्यता को दिखने की नाकाम कोशिश कर रहे है . होलीवूड भारत के सबसे बड़ी झोपड़ी धारावी पर फिल्म बनाके करोडो कमा रहा है . और हम लन्दन और न्यू यौर्क की गलियों मे कैमरा लेकर फिर रहे है .
हम अगर आपने स्तर को उपार लाना चाहनते है तो हमें अपने ऊपर, अपने समाज के ऊपर,आपनी सभ्यता के ऊपर फिल्म बनानी चाहिए. आज जब होलीवूड आपनी फिल्मो का नाम अवतार रख रहा है हम काइट बना रहे है !!
हमारा स्वंयं का इतिहास इतना ढृढ़ और विशाल है की हमें किसी और का इतिहास उधार लेने की जरूरत नहीं है ! जरूरत है तो सिर्फ हमारी स्वंय की मूवी बनाने की जिसमे हमारे लोगो को ध्यान मे रखकर काम किया जाये ! सफलता स्वंयं हमारे कदम चूमेगी !
Doing कमाल,
कमल उपाध्याय
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