Thursday 6 December 2012

बाबरी विध्वंश और मीडिया


एक बार मैंने एक पोस्ट लिखी बारिश का इंतज़ार। मैंने उसे ज्यादा प्रमोट
नहीं किया परन्तु आज भी लोग उस पोस्ट को पढ़ते है। मैंने कई ज्ञान की बाते
लिखी है पर बारिश का इंतज़ार मेरे मन की कल्पना के अलावा कुछ नहीं था।
परन्तु बारिश का इंतज़ार मेरी सबसे सुपरहिट पोस्ट है। गूगल बताता है की आज
तक 1200 लोग उसे पढ़ चुके है। मै सोचता हूँ की अब बारिश का इंतज़ार के तर्ज़
पर ही लिखा करू पर मेरा दिल कल्पना करना बंद कर देता है और मै नहीं लिखता।

हर कोई मेरी तरह नहीं सोचता और शायद यही कारण है की बाबरी
विध्वंश को शर्मनाक बताने वाले बड़े-बड़े टीवी चैनलों के एडिटर बाबरी
विध्वंश से जुडी खबरे धड़ल्ले से दिन भर हर मौके पर दिखाते है। पुरानी
तस्वीरे सामने लाते है और फिर कहेते है की ये शर्मनाक था परन्तु भूल जाते
है की उनकी तस्वीरों से ये शर्मनाक काम फिर हो सकता है। युवा के दिमाग से
खेलना ज्यादा कठिन नहीं है। उसे बरगलान ज्यादा मेहनत का काम नहीं होगा वो
भी तब जब खुद मीडिया सारी घटनाओ को सत्यापित करता है।

ये बात हम सब
को पता है की बाबरी विध्वंश गलत था और उस गलत को टीवी पर बार-बार दिखाने से
गलत सही तो नहीं होगा परन्तु फिर गलत होने का खतरा ज्यादा है। हाल ही में
मुंबई के VT टर्मिनस के पास हुए दंगो में यूवको को सिर्फ इन्टरनेट पर
तस्वीरे दिखाकर लाया गया था, तो आप स्थती की नाजुकता को समझ सकते है। बाबरी
विध्वंश गलत था, गलत है और गलत रहेगा। दो गलत मिलके एक सही नहीं हो सकते
1984 के सिख दंगो या 2002 के गोधरा दंगो से जोड़कर किसी भी दंगे को छोटा या
बड़ा नहीं बनाया जा सकता।

भारत एक स्वतंत्र देश है और यहाँ हर किसी
को अपनी राय देने का अधिकार है परन्तु इसका मतलब ये नहीं है की आप जिस चीज़
की आलोचना कर रहे है उसे ही लोगो को दिखाकर और प्रोत्साहित करे। आप कहेंगे
आप तो सच दिखाते है। सच दिखाए मना नहीं कर रहा पर सच को मिर्च और मसाला लगाकर उसमे नीम्बू निचोड़कर न दिखाए।




Doing Kamaal,
Kamal Upadhyay




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