छुटपन के सपनो मे खोया है मन ! कभी जागते कभी सोते रोया है मन !!
कभी वो बचपन की लुक्का छिप्पी मे मुस्कराता है मन !
मोगली, अलिफा लैला को सोच खिलखिलाता है मन !
माँ की डांट का, पाठशाला के घरकाम को सोच घबराता है मन !
कभी लंगड़ी , कभी कब्बड्डी मे खो जाता है मन !
चाराने की टॉफी और पचास पैसे की मलाई कुल्फी से ललचाता है मन !
छुटपन के सपनो मे खोया है मन ! कभी जागते कभी सोते रोया है मन !!
No comments:
Post a Comment