Saturday, 24 March 2012

छुटपन के सपनो मे खोया है मन !



छुटपन के सपनो मे खोया है मन ! कभी जागते कभी सोते रोया है मन !!




कभी वो बचपन की लुक्का छिप्पी मे मुस्कराता है मन !




मोगली, अलिफा लैला को सोच खिलखिलाता है मन !




माँ की डांट का, पाठशाला के घरकाम को सोच घबराता है मन !




कभी लंगड़ी , कभी कब्बड्डी मे खो जाता है मन !




चाराने की टॉफी और पचास पैसे की मलाई कुल्फी से ललचाता है मन !




छुटपन के सपनो मे खोया है मन ! कभी जागते कभी सोते रोया है मन !!




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