Wednesday 3 October 2012

क्या तीसरा मंच एक विकल्प है?


राजनीति मे हर नया दिन एक नए जोड़-तोड़
की शुरवात करता है. पिछले कुछ दिनों मे राजनितिक समीकरणों मे अमूलचुल
परिवर्तन हुए है. एलपीजी, डीसेल और एफडीआई के मुद्दे पर ममता दीदी ने
केंद्र से आपना समर्थन वापस ले लिया. ममता के सर्थन लेते ही कांग्रेस ने
सपा और बसपा सरीकी राजनीतिक पार्टिया से मोल-भाव कर लिया और वर्तमान समय मे सरकार  को बहुमत साबित करने मे कोई परेशानी नहीं होगी और वही तीसरे मंच के
विकल्प की बाते जोर पकड़ने लगी.

हाल ही मे हुए कई समाचार चैनलो के
सर्वे के माध्यम से ये खबर सामने आई की प्रादेशिक पार्टिया केंद्रीय
पार्टियों के मुकाबले मजबूत हो रही है इस बात का सबसे बड़ा उदहारण सपा है
जिसे कई समाचार चैनलो ने कांग्रेस और बीजेपी के बाद सबसे बड़ी पार्टी
बताया. मुलायम एक तरफ सरकार  को समर्थन दे रहे है क्योंकि वो नहीं चाहते की
केंद्र मे असम्प्र्दायिक ताकतों का बोलबाला हो पर वाही दूसरी तरफ सपा ने
पुरे जोर-शोर से भारत बंद मे समर्थन किया और सरकार  से एलपीजी, डीसेल और
एफडीआई के मुद्दे पर पिछे हटने को कहा. मुलायम की राजनीती को कोई आज तक
नहीं समझ पाया है.

कोयला घोटाले मे कांग्रेस और बीजेपी दोनों के
नेताओ का नाम सामान रूप से सामने आ रहा है. बीजेपी ने कोयला घोटाले मे जांच
करने की मांग को लेकर संसद का शीतकालीन शत्र नहीं चलने दिया और कांग्रेस
और बीजेपी के आपसी मतभेदों से प्रादेशिक पार्टियों को लाभ मिल रहा है.
अरविन्द केजरीवाल और उनके India against corruption के सदस्य भी
कांग्रेस और और बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है. राजनीति के गलियारों
मे होने वाले ये सभी समीकरण तीसरे मंच के विकल्प की कल्पना मजबूत कर रहे
है.

क्या तीसरा मंच एक विकल्प है?

श्री मनमोहन सिंह ने कुछ
ही महीनो पहेले आपने साक्षत्कार मे कहा की गटबंधन की राजनीति मे फैसले लेने
काफी कठिन है जिसके कारण आर्थिक बदलाव लाने मे दिक्कते आ रही है. हम
भूतकाल मे देख चुके है की किस तरह वामदल ने परमाणु अनुशंधन के फैसले पर UPA
-1 से अपना समर्थन वापस ले लिया, UPA -2 मे ममता दीदी ने एलपीजी, डीसेल और
एफडीआई के मुद्दे पर अपना समर्थन वापस ले लिया. भाजपा भी NDA के शासनकाल
मे गटबंधन की राजनीति के विरोध को देख चुकी है.

वर्तमान समय मे
कांग्रेस के पास २०० से भी ज्यादा सांसद है परन्तु श्री मनमोहन सिंह के
अनुसार गटबंधन के चलते कड़े फैसले लेने मे सरकार  को कठिनाईयों का सामना
करना पड़ रह है. तीसरे मंच के सबसे बड़ी पार्टी के पास ६० से अधिक सांसद
नहीं होंगे, तीसरे मंच का समीकरण कांग्रेस के वर्तमान सांसदों की गिनती का
ठीक उल्टा है. तीसरे मंच मे कई छोटी मोटी प्रादेशिक पार्टिया होंगी २०० से
भी ज्यादा सांसदों का गटबंधन होगा जिससे निर्णय लेना और कठिन हो जायेगा. इस
बात से भी इनकार नहीं कर सकते की सभी पार्टिया बन्दर बाँट मे लग जाए.

यदि आप ने कांग्रेस और भाजपा के समय मे भारत मे कोई प्रगति नहीं देखी तो आप तीसरे मंच से ज्यादा उम्मीद न लगाये !







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