ठंडा पानी पिया बड़ा मज़ा आया. मै १ लीटर से
ज्यादा पानी पी चूका था. आप मुझे पूछ सकते है ठंडा पानी पिने मै इतनी बड़ी
बात क्या है, अरे भाई १९९२ में बहुत ही कम घरो में फ्रीज़र होता था. मै
बहुत खुशनसीब था जो की मेरे घर में फ्रीज़र था. मेरे पिताजी बैंक में कार्य
करते थे तो सुख सुविधा की हर चीज़ घर में मौजूद थी.
१५ मई १९९२ पापा ऑफिस से घर जल्दी आ गए. उनके पीछे दो आदमी एक बड़ा सा
बॉक्स उठा कर ला रहे थे. बॉक्स ५ फीट लंबा था, माँ और मै सोच रहे थे की
इतने बड़े बॉक्स मै क्या आया है. पापा ने देलिवेरी बॉय को २० रुपये दे दिए
और मुझे ५ रुपये देकर बाज़ार से नारियल और फूल लेन को कहा. मै इस वक़्त
बाज़ार नहीं जाने चाहता था मेरी उत्सुकता तो बॉक्स के अन्दर आये सामन को
देखने की थी. पापा ने फिर एक बार कहा बेटा जल्दी जा और फूल लेकर आ फिर ये
बॉक्स खुलेगा. मै झट बाज़ार की तरफ दौड़ा और माली चाचा के यहाँ से हार और फूल
लेकर झट घर आ गया.
खुल जा सिम-सिम!! अली बाबा की फिल्म का डायलोग मेरे मन मै गूंज रहा था.
पापा बॉक्स की तरफ बढे और बॉक्स खोला और खोलते खोलते बताया की इसके अन्दर
फ्रीजर है. भाई पूजा हुई, नारियल फूटा, पड़ोस से शर्मा चाचा, शेख भाई, तोमर
दादा, हंडे काका सब को मै घर बुला के लाया. फ्रीज़र मे पानी रखा, सबके लिए
चाय बन के आई, चाय पिने के बाद सभी बैठ कर बातें करने लगे. भाई पानी ठंडा
होने मे टाइम तो लगता है. शायद पहेली बार लोग चाय पिने के बाद पानी पिने का
इंतजार कर रहे थे.
भाई आधा घंटा काटना दुस्वार हो गया, मई का महिना था और गर्मी बहुत थी. आधे
घंटे बीत गए पानी ठंडा हुआ, निम्बू शरबत बना लोग पिने लगे,
मै भी एक कोने में बैठकर निम्बू शरबत का मज़ा ले रहा था. भाई अब तो रोज़
ठंडा पानी पीना और गरम खाने को फ्रीज़र मे रख कर ठंडा करके खाने में मुझे
बहुत मज़ा आता था, अरे भाई १२ साल का था मै कुछ अलग करने में ही मज़ा आता था.
मै हमेशा फ्रीज़र खोलने का मौका देख ता रहता था. जब किसी का ध्यान फ्रीज़र
की तरफ नहीं होता था मै चुप-चाप फ्रीज़र खोल के उसके सामने खड़ा हो जाता
था, ठंडी हवा खाने मे बहुत मज़ा आता था , अरे भाई उस समय ए.सी नहीं था घर पे
तो फ्रीज़र के सामने ही खड़ा होकर हवा ले लेता था. और उस समय मुझे ए.सी के
बारे मे पता भी नहीं था. ए.सी उस समय आम बात नहीं थी और सिर्फ ख़ास लोगो के
घर ही पाया जाता था.
कम से कम मोह्हाले के २० घर मेरे फ्रीज़र से पानी ले जाते थे. अब मै
क्रिकेट खेलते समय ओपनिंग में बल्लेबाजी करने आता था. अरे भाई में खुश
रहूँगा तो ही तो ब्रेक में ठंडा पानी पिने मिलेगा. अचानक से डॉक्टर ने भी
सुई लगाने के बाद बर्फ से सेकाई करना जरूरी कर दिया था तो पुरे मोहल्ले मै
किसे सुई लगी है ये बात हमरे घर पर पता चल जाती, आज किसके घर पर आमरस बनेगा
ये भी हमें पता रहता था.
अब फ्रीज़र वालो का वो रुतबा नहीं रहा. हर घर में फ्रीज़र है. उस
समय हमरा फ्रीज़र १६००० रुपये मै खरीद कर आया था और आज कल तो ५-६ हज़ार में
भी फ्रीज़र आ जाता है परन्तु आज भी मै आपने बचपन के दिन और फ्रीज़र के साथ
जुडी यादो को याद कर के खुश रहेता हु. अब हमर वो पुराना फ्रीज़र कबाड़ी
वाला ले गया क्योंकि उसके मरम्मत के खर्चे में अब नया फ्रीज़र आने लगा है.
Doing Kamaal,
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