Wednesday, 14 November 2012

कैलाश की दिवाली

मोहल्ले के सभी बच्चे तीन दिन से दिवाली मना रहे थे। कैलाश भी दिवाली मनाना
चाहता था, परंतु माँ उसे पटाखे खरीदने के लिए पैसा नहीं दे रही थी। माँ
पैसे कहाँ से देती लोगो के घर झाड़ू पोछा करके जो पैसा मिलता था, उससे घर
चलाना भी मुश्किल हो जाता था। महीने के अंत तक खाने पिने के भी लाले पड
जाते थे। कैलाश को ये बाते समझ में नहीं आती थी, उसे सिर्फ दिवाली में
पठाखे जलाने के लिए चाहिए थे। माँ भी कैलाश को खुश देखना चाहती थी परन्तु पैसे की मजबूरी के आगे कुछ नहीं कर पाती थी।




कैलाश
घर से कुछ दूर वाले मैदान में खेल रहा था। दोपहर को घर आया और खाना खाकर
फिर से खेलने चला गया। माँ सोच रही थी की शायद आज पटाखों का बुखार उसके सर
पर नहीं है। माँ खुश हो गयी खोटे जी के यहाँ काम पर चली गयी। दिवाली का दिन
था तो काम रोज से ज्यादा था. माँ भी जल्दी जल्दी काम निपटाकर घर जाना
चाहती थी। दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजा करके लक्ष्मी माँ को मनाना चाहती थी।
पर लक्ष्मी माँ भी बिना देशी घी के दिये से नहीं माननेवाली। कैलाश के घर
में तो खाने का तेल नहीं था तो घी की दूर-दूर तक सुघंध का अता पता नहीं था।




माँ काम ख़तम कर के घर आयी तो कैलाश झट से आकर माँ से चिपक गया। माँ ने कैलाश को हाथ पांव धोने के लिए कहा और पूजा की तैयारी में जूट गयी। खोटे जी के यहाँ से माँ को दिवाली के 30 रुपये मिले थे और माँ ने उन पैसो से दीयाँ, तेल और शक्कर की मिठाई खरीद ली। पूजा के बाद कैलाश ने मिठाई खा ली और फिर से फटाखो के लिए जिद करने लगा। माँ भी कैलाश की हर मांग को पूरा करना चाहती थी पर मजबूर थी। कैलाश नहीं मान रहा था और जिद कर रहा था। माँ ने गुस्से में आकर कैलाश को बहुत मारा और कैलाश रोते रोते सो गया और माँ भी एक तरफ रोते रोते सो गयी।



कैलाश की दिवाली दिल दुखा देनेवाली थी परन्तु आज भी भारत में कई ऐसे कैलाश है जो दिवाली के दिन रोते रोते सो जाते है। 



Doing Kamaal,
Kamal Upadhyay

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