बहुत साल कहेना सही नहीं होगा, दो साल पहेले एक सिनेमा देखा था। वो जो थ्री
इडियट वाले वीरू शहस्त्र बुद्धे थे वो मुख्य कलाकार थे। ठीक ठीक याद नहीं
पर शायद श्याम बेनेगल इस फिल्म के निर्माता थे। कई और भी कलकार थे इस
सिनेमा में पर उनका नाम याद नहीं मुझे, परन्तु अभिनय सभी का याद है। हाँ
हाँ धीरज रख्खो कहानी पर आ रहा हूँ। भारत की राजनितिक व्यवस्था के ऊपर अगर
हम व्यंग की बात करे तो इस फिल्म को मै 5 में से 4 अंक दूंगा।
कई
वर्षो तक मुंबई में काम करने के बाद बमन अपने गाँव अपनी बेटी की शादी करने
के लिए आता है। गाँव में पानी की बहूत किल्लत है अतः वो सरकारी मदत से कूआँ
खुदवाने की सोचता है। बमन जैसे तैसे सरकारी तंत्र से पैसा लेने में कामयाब
हो जाता है परन्तु घूस पुताई के बाद सारा पैसा ख़तम हो जाता है और कूआँ
सिर्फ सरकारी पन्नो पर ही खुद जाता है, परन्तु सरकारी पन्नो पर खुदे कूँए
से सिर्फ सरकारी तंत्र की प्यास बुझ सकती है आम आदमी को तो पानी चाहिए।
बमन
इस घटना के कारण बहुत आहात होता है और सरकारी तंत्र से लड़ने की ठान लेता
है। बमन एक आंदोलन शुरू करता है जिसमे कई गरीब लोग शामिल हो जाते है। कूआँ
चोरी हो गया है तो अब सरकार को लोगो को कूआँ ढूंढ़ कर देना होगा। राजनीतिक
उथल पुथल में नेताजी सभी गरीबो के यहाँ कूआँ खुदवा देते है। गरीब भी कूआँ
पाकर खुश हो जाता है। भारत में प्रतिदिन ना ना प्रकार के कूंए चोरी होते है
और सरकारी पन्नो में दफ़न हो जाते है।
हमारे प्रधानमंत्री स्वंयं इस बात को मान चुके है की केंद्र से निकला रुपया जनता तक पहुचंते-पहुचंते
15 पैसा बन जाता है। सरकारी तंत्र की लूट से कोई नहीं बच पाया है क्योंकि
सरकारी तंत्र में काम करनेवाला आदमी हमारे बीच से ही आता है। सरकारी तंत्र
में लूट मचाने वाला आदमी हमारे समाज का दर्पण है। मै भली भांति जनता हूँ
हमें अपनी गन्दी शक्ल आईने में देखना पसंद नहीं है परन्तु हम सच्चाई को भी
झूटला नहीं सकते। समाज से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए हमें अपने आप से
शुरुवात करनी होगी।
Doing Kamaal,
Kamal Upadhyay
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