Wednesday 26 February 2014

मिग 29 की आत्मकथा



मैं मिग हू।  मैं एक लड़ाकू विमान हू।  मेरा जन्म अक्टूबर 1977  में रूस में हुआ।  संयुक्त राज्य अमेरीका से लड़ने के लिए मेरा जन्म हुआ था।  मैंने रूस के शीतकालीन यूद्ध में उसकी बहुत मदत कि और उन्हें कई मोर्चो पर जीत दिलाई।  मेरे कई भाई बहन इस यूद्ध के दौरान शहीद हो गए। मेरे  जन्म के बाद मैंने कई देशो का भ्रमण किया।  यूगोस्लाविया, सर्बिआ , जर्मनी , पोलैंड , संयुक्त राज्य अमेरिका , ईराक , सूडान कुछ ऐसे देश है जहाँ मैं उनके लोगो के बीच जाकर पला बढ़ा।  






80 के दशक में मैं भारत आया ।  भारत आने से पहेले मैंने कई देशो के युद्धों में भाग लिया। मेरे कई भाई युद्धो में शहीद हुए और मैं हमेशा देश कि रक्षा करते रहा।  भारत ने मुझे अपने वायु सेना में शामिल तो कर लिया परन्तु मुझे कभी किसी युद्ध में इस्तेमाल नहीं किया।  कारगिल युद्ध के समय मेरे कई भाईयो ने पाकिस्तानी घुसपैठियो को भगाने में भारतीय सेना कि मदत कि परन्तु मैं सिर्फ हाथ पे हाथ रखकर अपनी बरी का इंतज़ार करता रहा।  






मैंने कई बार 15 अगस्त और 26 जनवरी को लालकिले के ऊपर कला बाजिया करकर लोगो का मन बहलाया परन्तु मुझे इस कार्य में कभी ख़ुशी नहीं हुई।  मेरा काम देश कि रक्षा करना था, न कि मसखरा बनकर लोगो का मन बहलाना।  भारत ने मुझे इतने पैसे खर्च करकर ख़रीदा परन्तु उन्होंने मेरा सही उपयोग कभी नहीं किया। मैं अपनी भारत कि जिंदगी से खुश नहीं था।  मुझे यहाँ का जीवन रास नहीं आ रहा था,  परन्तु मेरे पास कोई पर्याय नहीं था।  जैसे तैसे मैं अपने दिन काट रहा था।  






एक दिन अचानक मुझे पता चला की एक हवाई अभ्यास के दौरान मेरे एक भाई कि दुर्घटना में मृत्यु हो गई।  उसके बाद एक एक करके मेरे कई भाई अभ्यास के दौरान वीरगति को प्राप्त हो गए।  ऊनमे से कई ऐसे थे जिन्होंने कभी किसी यूद्ध में भाग नहीं लिया।  2009 में रूस ने मिग 29 का उपयोग बंद कर दिया परन्तु भारत अभी भी कलाबाजियों के प्रदर्शन में मेरा उपयोग कर रहा था।  इन हवाई अभ्यासों और कलाबाजियों से मुझे अब डर लगने लगा था। 






एक दिन मैंने हवाई अभ्यास के लिए जामनगर के आकाश में उड़ान भरी।  मुझे कुछ अनिष्ठ होने कि आशंका लग रही थी मेरे पंख जैसे मुझे उड़ने के लिए मना कर रहे थे परन्तु मेरे बस में कुछ नहीं था।  मैं जैसे ही आसमान में पंहुचा मेरी साँसे भारी होने लगी।  मैंने तुरन्त अपने चालक को इस बात कि सूचना दे दी , परन्तु अब शायद देर हो चुकी थी।  मेरा चालक और मैं जमीन पर आ गिरे और इस दुर्घटना में हम दोनों कि मृत्यु हो गई।  दूसरे दिन कई अखबारो कि सुर्खियो में मेरा नाम छपा था।  






मुझे मरने का डर कभी नहीं था , क्योंकि मेरा काम ही कुच्छ ऐसा था कि मौत तो एक दिन आनी ही थी , परन्तु मैं यूद्ध में अपने देश कि रक्षा करते हुए मरना चाहता था। मैं चाहता था कि मुझे जब कभी वीरगति मिले, मेरे भाई मेरे आस पास ए देखने के लिए हो कि किस तरह मै बहादुरी से उनके साथ लड़ा और लड़ते लड़ते वीर गति को प्राप्त हुआ। आशा करता हू कि अगले जनम में मेरी ये हालत नहीं होगी।  





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