भारत के राजनेता असली मुद्दों और समस्याओं को समझने में विफल क्यों है ? मैंने कुछ महीने पहले अपने एक लेख में इस बात का ज़िक्र किया था. मैं ने उस लेख में उन स्मारकों और स्मारक के विकास में नेताओ द्वारा अपना समय और जनता का पैसा खर्च करने का कारण भी लिखा है. स्मारको और मूर्तियो का निर्माण मतदाताओ को भावनात्मक रूप से जोड़कर राजनीति में अपने वोट बैंक की रक्षा करना है. बहन मायावती ने मूर्तियो के निर्माण तो एक कीर्तिमान ही बना डाला उन्होंने बाबा साहेब अम्बेडकर के साथ साथ खुद की प्रतिमा भी बनवा दी।
अरब सागर में शिवाजी का एक स्मारक बनाने की भी बात चल रही थी. मैंने सरकार के शिवाजी के स्मारक के नाम पर होने वाली राजनिति का पुरजोर विरोध किया। स्मारक में होने वालो पैसे का इस्तमाल हम अन्य सामाजिक विकास के मुद्दों के लिए कर सकते है। सरकार का ए मानना है कि इस स्मारक से पर्यटन बढ़ेगा और सरकारी राजस्व में वृद्धि होगी, परन्तु सरकार ए भूल गयी कि स्मारक पर खर्च हुए पैसे को कमाने में कई वर्ष लग जाएंगे।
हम सभी जनाते है कि भारत का नाम उन देशो में शामिल है जहा आज भी कुपोषण है। भारत का स्वास्थ्य के क्षेत्र में विकास अभी तक उम्मीद से कम है और हम स्मारकों के विकास पर पैसा खर्च कर रहे हैं. कई लोगो ने शिवाजी प्रतिमा के निर्माण के लिए महाराष्ट्र सरकार के फैसले की आलोचना की है, लेकिन अब उनमे से ही कई लोग सरदार पटेल की प्रतिमा के निर्माण के लिए मोदी के फैसले का समर्थन कर रहे हैं.
मुझे लगा था नरेंद्र मोदी जैसे व्यक्ति मूर्ति से परे सोचेंगे, परन्तु नरेंद्र मोदी ने मुझे गलत साबित कर दिया।नरेंद्र मोदी सरदार पटेल कि मूर्ति पर खर्च होनेवाले पैसे से एक अंतरराष्ट्रीय अस्पताल या एक अंतराष्ट्रीय विश्वविद्यालय बनाने का फैसला करते तो शायद देश के लिए अच्छा होता।
सरदार की प्रतिमा पर आपकी क्या राय है ? k9kamal@gmail.com पर अपने विचार लिख भेजें.
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