Wednesday 22 May 2013

हिंदी सिनेमा के १०० साल

हिंदी सिनेमा ने इस वर्ष १०० साल पूरे कर
लिए। राजा हरिश्चन्द्र से शुर हुआ हिंदी सिनेमा जगत का सफ़र पान सिंह तोमर
तक पहुँच चूका है। हिंदी सिनेमा का इतिहास बहुत रोचक है। समय के साथ कभी
सिनेमा समाज का दर्पण बना और कभी समाज सिनेमा का दर्पण बन गया। कहानी ,
कलाकार , निर्देशक और सिनेमा की प्रस्तुति बदलती रही और समाज का सिनेमा के
प्रति व्यवहार भी बदलता रहा। आज भी आप को मिथुन , अजय देवगन नुमा जुल्फों
वाले हीरो सड़क पर दिख जायेंगे।

हिंदी सिनेमा के १०० साल होने पर आप
सभी को "हरिशचंद्रा ची फैक्ट्री" इस फिल्म को जरुर देखना चाहिए। फालके जी
ने किस तरह अपने घर बार को बेच कर, अपने स्वास्थ को ताके पर रखकर अपनी पहली
फिल्म बनाई। फालके जी के ऊपर बनी इस फिल्म से आप समझेंगे की भारत में
सिनेमा का आगाज कितना कठिन था। फालके साहब के जूनून ने सफर शुरू किया था आज
हर कोई उसका हिस्सा बनना चाहता है। फालके जी को एक अभिनेत्री ढूढ़ने के लिए
बहुत पापड़ बेलने पड़े और आज लोग
कतार में अभिनेत्री बनना चाहते है।

हिंदी
सिनेमा में कई सितारे आये और गए। अभिनय में हर एक ने खुद का लोहा मनवाया
पर मै बच्चन साहब को काफी करीब से जानता हू। आजतक मैंने २०० से जादा हिंदी
फिल्मे देखी होंगी और उसमे सबसे
जादा अनुपात बच्चन साहब की फिल्मो का है।
बच्चन साहब की एंग्री यंग मैन वाली छवी ने उन्हें वो सितारा बना दिया जहा
आज
हर एक अभिनेता पहुचना चाहता है फिल्म की शुरुवात में बच्चन साहब एक दबे
कुचले तबके से आते है और अचानक समाज में होने वाले जुर्मो के प्रति खड़े हो
जाते है हर कोई बच्चन साहब में अपने आप को देखता था।

प्यार मोहब्बत
के फोर्मुल पर चलने वाला सिनेमा पिछले २० सालो में सच्चाई के ज्यादा करीब
आता दिखा। सामाजिक मुद्दों पर सिनेमा का ध्यान गया और दर्शको ने भी उसे
सराहा। मुंबई अंडरवर्ल्ड, धारावी और कॉरपोरेट कल्चर पर बनाने वाली फिल्मो
ने लोगो के सामने समाज की सच्चाई लाके रख दी। सिनेमा समय के साथ और बेहतर
होगा और परन्तु सिनेमा समय के साथ और बोल्ड होगा जो समाज के एक तबके को
नापसंद है,
क्योंकि सिनेमा में लोगो को प्रेरित करने और झिझोड़ने का साहस है।

हिंदी सिनेमा के १०० साल होने पर सभी सिनेमा से जुड़े लोगो को हार्दिक बधाई।







Doing Kamaal, 
Kamal Upadhyay

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