Saturday, 4 May 2013

पर क्या वो सितारा अभ्भी चमकता है

Part - I



गाँव की अँधेरी रातों में,


वो सितारा उजाला फैलता था। 





उजियाले चाँद की रोशनी में,


वो सितारा कही छुप जाता था।





मै जब रात को सो जाता था,


वो सितारा मेरा मन बहलाता था। 





दूर गगन में जुगनू सा टिमटिमाता,


वो सितारा कलाबजिया दिखता था। 





मै लेट लतीफ़ देर से आता,


वो सितारा मुझे समय का एहसास करता था। 





Part - II





मुंबई की तंग गलियों में कही खो गया मै,


पर क्या वो सितारा अभ्भी चमकता है।





कई दिन बीते मिला नहीं मै,


पर क्या वो सितारा अभ्भी चमकता है।





अँधेरी और उजली रात का एहसास नहीं है,


पर क्या वो सितारा अभ्भी चमकता है।





जाने दिन बीते कितने मैंने ऊपर नहीं देखा है,


पर क्या वो सितारा अभ्भी चमकता है।





लाईट की चका चौंध में तारे गुम गए,


पर क्या वो सितारा अभ्भी चमकता है।





सुना टूट के एक तारा गिरा कही है,


पर क्या वो सितारा अभ्भी चमकता है।





Doing Kamaal, 
Kamal Upadhyay

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