आज़ादी कि लड़ाई के बाद गांधीजी चाहते थे कि कांग्रेस पार्टी को भंग कर दिया जाए। परन्तु नेहरु तथा कांग्रेस पार्टी के कई सदस्य गांधीजी की इस बात से सहमत नहीं थे। कांग्रेस के सदस्यो और गांधीजी के बीच इस बारे में कुछ विचार विमर्श होता उससे पहेले गांधीजी ए दुनिया छोड़कर चले गए. आज़ादी के पहेले कांग्रेस ने आज़ादी कि लड़ाई में भागीदारी निभाई थी और आज़ादी के बाद वो देश पर एक राजनैतिक पार्टी के रूप में शासन करने लगे।
भारत का इतिहास गांधीजी और कांग्रेस को शीर्ष में रखकर लिखा गया है। स्कूल कि इतिहास की किताबे पढने पर तो ऐसा लगता है भारत का इतिहास नहीं बल्कि हम गांधीजी और कांग्रेस कि आत्मकथा पढ़ रहे है। भारत कि आज़ादी कि लड़ाई में कई ऐसे स्व्तंत्रता सेनानी है जिन्हे कांग्रेस द्वारा लिखे इतिहास में कोई जगह नहीं मिली। कुछ आज़ादी कि नेताओ को इतिहास कि किताबो एक दो अनुच्छेद मिल गए पर स्कूल में मास्टर साहब ने कह दिया था कि इन्हे याद करने कि जरूरत नहीं है क्योंकि छमाही परीक्षा के प्रश्नो में लोग महत्तवपूर्ण नहीं है। कांग्रेस ने गांधीजी को एक बड़ा ब्रैंड बना दिया और तब से आज तक उनके नाम को भुना रही है।
इंदिरा नेहरु ने एक पारसी व्यक्ति से शादी कि थी। परन्तु हिन्दू पारसी शादी में कुछ अड़चने आ गयी और इस अड़चन को दूर करने के लिए गांधीजी ने इंदिरा को अपना उपनाम गांधी दे दिया। इंदिरा नेहरु अब इंदिरा गांधी बन चुकी थी। गांधीजी एक ब्रैंड बन चुके थे। पुरे भारत वर्ष में गांधीजी के करोडो प्रशशंक थे। गांधीजी का नाम चारो तरफ फ़ैल चूका था कि तभी एक दिन दहाड़े दोपहर में गांधीजी कि हत्या कर दी गई। जिस गांधीजी के खिलाफ कोई खड़ा नहीं हुआ उसे दिन दहाड़े गोलियो से छलनी कर दिया गया। गांधीजी कि हत्या से लोगो में गांधीजी के प्रति सम्मान दिन दुगना रात चौगुना हो गया। गांधीजी कि हत्या के बाद उनकी और कांग्रेस कि ब्रैंड वैल्यू में काफी बढ़ोतरी हुई।
क्या हत्या होने से लोग ब्रैंड बन जाते है ?
मेरे प्रश्न का जवाब कांग्रेस के जगह जगह टंगे पोस्टरो से मिल जाता है। कांग्रेस के हर पोस्टर में आप गांधीजी, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को देख सकते है। जवाहरलाल नेहरु को तो जैसे कांग्रेस वाले भूल गए। गांधीजी, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी में क्या समानता है और क्यों ए कांग्रेस के हर पोस्टर पर नज़र आते है। आप ने सोचा कभी इस बारे में ! गांधीजी, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी इन सभी कि हत्या कि गई थी। और इनकी हत्या के कारन इन्होने ने हमेशा लोगो के मन में अपनी एक नई तस्वीर बनाई। कांग्रेस इस बात से भली भांति परिचित है और शायद इसलिए आपको गांधीजी उनके हर पोस्टर पर नज़र आते है।
गांधीजी ने शायद भारत और कांग्रेस का राजनितिक भविष्य देखा था और शायद इसलिए वो चाहते थे कि भारत को स्व्तंत्रता मिलाने के बाद उन्होंने कांग्रेस को भंग करने कि मांग कि थी। हम सभी गांधी का सम्मान करते है पर इसका मतलब ए नहीं है कि कांग्रेस सिर्फ गांधीजी के नाम पर वोट मांगती फिरे। यदि कांग्रेस कहती है कि वो गांधीजी के पथ पर चल रहे है तो १९८४ में हुए सिख्खो के कत्लेआम के बारे में कांग्रेस कि क्या राय है। २ सीखो ने ऑपरेशन ब्लू स्टार के इंदिरा कि हत्या कर दी और उसके बाद सिख्खो का कत्लेआम हुआ। उनके एक बड़े नेता ने कहा जब एक बड़ा पेड़ गिरता है तो उससे कई और पेड़ उखड जाते है।
गांधीजी अहिंसा के पूजारी थे। कांग्रेस ने कई मौको पर गांधीजी के विपरीत पथ पर जाकर राजनीती कि है। चाहे १९८४ का सीखो का कत्लेआम हो या फिर इंदिरा गांधी द्वारा भारत पर थोपा गया आपातकाल। कांग्रेस ने गांधीजी को एक बड़ा ब्रैंड बनाया और अब उस ब्रांड को अपने राजनितिक फायदे के लिए इस्तेमाल करते चले आ रहे है।
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